जग ने तुझे निराश किया
जग ने तुझे निराश किया! डूब-डूबकर मन के अंदर लाया तू निज भावों का स्वर, कभी न उनकी सच्चाई पर जगती ने विश्वास किया! जग ने तुझे निराश किया! तूने अपनी प्यास बताई, जग ने समझा तू मधुपायी, सौरभ समझा, जिसको तूने कहकर निज उच्छवास दिया! जग ने तुझे निराश किया! पूछा, निज रोदन में सकरुण तूने दिखलाए क्या-क्या गुण? कविता कहकर जग ने तेरे क्रंदन का उपहास किया! जग ने तुझे निराश किया!

Read Next