साथी, कवि नयनों का पानी-
साथी, कवि नयनों का पानी- चढ जाए मंदिर प्रतिमा पर, यी दे मस्जिद की गागर भर, या धोए वह रक्त सना है जिससे जग का आहत प्राणी? साथी, कवि नयनों का पानी- लिखे कथाएँ राज-काज की, या परिवर्तित जन समाज की, या मानवता के विषाद की लिखे अनादि-अनंत कहानी? साथी, कवि नयनों का पानी- ’कल-कल’ करे सरित निर्झर में, या मुखरित हो सिन्धु लहर में, युग वाणी बोले या बोले वह, जो है युग-युग की वाणी? साथी, कवि नयनों का पानी-

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