क्या कंकड़-पत्थर चुन लाऊँ?
क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ? यौवन के उजड़े प्रदेश के, इस उर के ध्‍वंसावशेष के, भग्‍न शिला-खंडों से क्‍या मैं फिर आशा की भीत उठाऊँ? क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ? स्‍वप्‍नों के इस रंगमहल में, हँसूँ निशा की चहल पहल में? या इस खंडहर की समाधि‍ पर बैठ रुदन को गीत बनाऊँ? क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ? इसमें करुण स्‍मृतियाँ सोईं, इसमें मेरी निधियाँ सोईं, इसका नाम-निशान मिटाऊँ या मैं इस पर दीप जलाऊँ? क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ?

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