था तुम्हें मैंने रुलाया
था तुम्हें मैंने रुलाया! हाय, मृदु इच्छा तुम्हारी! हा, उपेक्षा कटु हमारी! था बहुत माँगा न तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया! था तुम्हें मैंने रुलाया! स्नेह का वह कण तरल था, मधु न था, न सुधा-गरल था, एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया! था तुम्हें मैंने रुलाया! बूँद कल की आज सागर, सोचता हूँ बैठ तट पर - क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया! था तुम्हें मैंने रुलाया!

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