फिर भी जीवन की अभिलाषा!
दुर्दिन की दुर्भाग्य निशा में,
लीन हुए अज्ञात दिशा में
साथी जो समझा करते थे मेरे पागल मन की भाषा!
फिर भी जीवन की अभिलाषा!
सुखी किरण दिन की जो खोई,
मिली न सपनों में भी कोई,
फिर प्रभात होगा, इसकी भी रही नहीं प्राची से आशा!
फिर भी जीवन की अभिलाषा!
शून्य प्रतीक्षा में है मेरी,
गिनती के क्षण की है देरी,
अंधकार में समा जाएगा संसृति का सब खेल-तमाशा!
फिर भी जीवन की अभिलाषा!