साज़-ए-उल्फ़त छिड़ रहा है आँसुओं के साज़ पर
साज़-ए-उल्फ़त छिड़ रहा है आँसुओं के साज़ पर मुस्कुराए हम तो उन को बद-गुमानी हो गई

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