अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दरमियाँ गुज़रे
अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दरमियाँ गुज़रे तो फिर ये कैसे कटे ज़िंदगी कहाँ गुज़रे

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