'गाँधी-जी' की याद में!
वही है शोर-ए-हाए-ओ-हू, वही हुजूम-ए-मर्द-ओ-ज़न मगर वो हुस्न-ए-ज़िंदगी, मगर वो जन्नत-ए-वतन वही ज़मीं, वहीं ज़माँ, वही मकीं, वही मकाँ मगर सुरूर-ए-यक-दिली, मगर नशात-ए-अंजुमन वही है शौक़-ए-नौ-ब-नौ, वही जमाल-ए-रंग-रंग मगर वो इस्मत-ए-नज़र, तहारत-ए-लब-ओ-दहन तरक़्क़ियों पे गरचे हैं, तमद्दुन-ओ-मुआशरत मगर वो हुस्न-ए-सादगी, वो सादगी का बाँकपन शराब-ए-नौ की मस्तियाँ, कि अल-हफ़ीज़-ओ-अल-अमाँ मगर वो इक लतीफ़ सा सुरूर-ए-बादा-ए-कुहन ये नग़्मा-ए-हयात है कि है अजल तराना-संज ये दौर-ए-काएनात है कि रक़्स में है अहरमन हज़ार-दर-हज़ार हैं अगरचे रहबरान-ए-मुल्क मगर वो पीर-ए-नौजवाँ, वो एक मर्द-ए-सफ़-शिकन वही महात्मा वही शहीद-ए-अम्न-ओ-आश्ती प्रेम जिस की ज़िंदगी, ख़ुलूस जिस का पैरहन वही सितारे हैं, मगर कहाँ वो माहताब-ए-हिन्द वही है अंजुमन, मगर कहाँ वो सद्र-ए-अंजुमन

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