नियाज़ ओ नाज़ के झगड़े मिटाए जाते हैं
नियाज़ ओ नाज़ के झगड़े मिटाए जाते हैं हम उन में और वो हम में समाए जाते हैं शुरू-ए-राह-ए-मोहब्बत अरे मआज़-अल्लाह ये हाल है कि क़दम डगमगाए जाते हैं ये नाज़-ए-हुस्न तो देखो कि दिल को तड़पा कर नज़र मिलाते नहीं मुस्कुराए जाते हैं मिरे जुनून-ए-तमन्ना का कुछ ख़याल नहीं लजाए जाते हैं दामन छुड़ाए जाते हैं जो दिल से उठते हैं शोले वो रंग बन बन कर तमाम मंज़र-ए-फ़ितरत पे छाए जाते हैं मैं अपनी आह के सदक़े कि मेरी आह में भी तिरी निगाह के अंदाज़ पाए जाते हैं रवाँ दवाँ लिए जाती है आरज़ू-ए-विसाल कशाँ कशाँ तिरे नज़दीक आए जाते हैं कहाँ मनाज़़िल-ए-हस्ती कहाँ हम अहल-ए-फ़ना अभी कुछ और ये तोहमत उठाए जाते हैं मिरी तलब भी उसी के करम का सदक़ा है क़दम ये उठते नहीं हैं उठाए जाते हैं इलाही तर्क-ए-मोहब्बत भी क्या मोहब्बत है भुलाते हैं उन्हें वो याद आए जाते हैं सुनाए थे लब-ए-नय से किसी ने जो नग़्मे लब-ए-'जिगर' से मुकर्रर सुनाए जाते हैं

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