न देखा रुख़ बे-नक़ाब-ए-मोहब्बत
न देखा रुख़ बे-नक़ाब-ए-मोहब्बत मोहब्बत है शायद हिजाब-ए-मोहब्बत बरसता है कैफ़-ए-शबाब-ए-मोहब्बत हर आँसू है जाम-ए-शराब-ए-मोहब्बत अजब जोश पर है शबाब-ए-मोहब्बत मोहब्बत है मस्त-ए-शराब-ए-मोहब्बत ज़हे ख़्वाब ओ ताबीर ख़्वाब-ए-मोहब्बत मोहब्बत ही निकली जवाब-ए-मोहब्बत मुझे क्या पड़ी है तिरे दर से उठ्ठूँ ठहरने जो दे इज़्तिराब-ए-मोहब्बत दिल-ए-ज़र्रा ज़र्रा है तूर-ए-तजल्ली ज़हे जल्वा-ए-आफ़्ताब-ए-मोहब्बत सभी उठ गए दीदा ओ दिल से पर्दे न उट्ठा मगर इक हिजाब-ए-मोहब्बत न रक्खो ग़रज़ हम से इतना ही कह दो हलाक-ए-तबस्सुम ख़राब-ए-मोहब्बत लहू की हर इक बूँद दिल बन गई है ख़ुशा लज़्ज़त-ए-कामयाब-ए-मोहब्बत हुदूद-ए-मोहब्बत से भी बढ़ गए हम सलामत रहे इज़्तिराब-ए-मोहब्बत

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