मोहब्बत सुल्ह भी पैकार भी है
मोहब्बत सुल्ह भी पैकार भी है ये शाख़-ए-गुल भी है तलवार भी है तबीअत इस तरफ़ ख़ुद्दार भी है उधर नाज़ुक मिज़ाज-ए-यार भी है अदा-ए-इश्क़ अदा-ए-यार भी है बहुत सादा बहुत पुरकार भी है ये फ़ित्ने जिन से इक दुनिया है नालाँ इन्हीं से गर्मी-ए-बाज़ार भी है जुनूँ के दम से है नज़्म-ए-दो-आलम जुनूँ बरहम-ज़न-ए-अफ़्कार भी है नफ़स पर है मदार-ए-ज़िंदगानी नफ़स चलती हुई तलवार भी है इसी इंसान में सब कुछ है पिन्हाँ मगर ये मअरिफ़त दुश्वार भी है वो बू-ए-गुल कि है जान-ए-चमन भी क़यामत है चमन-बे-ज़ार भी है यही दुनिया है निस्बत आँसुओं की यही दुनिया तबस्सुम-ज़ार भी है जहाँ वो हैं वहीं मेरा तसव्वुर जहाँ मैं हूँ ख़याल-ए-यार भी है ख़बर-दार ऐ सुबुक-सारान-ए-साहिल ये साहिल ही कभी मंजधार भी है ग़नीमत है कि इस दौर-ए-हवस में तिरा मिलना बहुत दुश्वार भी है जो कोई सुन सके तो निकहत-ए-गुल शिकस्त-ए-रंग की झंकार भी है उन आँखों की ज़हे मोजज़-बयानी बहम इंकार भी इक़रार भी है

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