ख़ुशा बेदाद ख़ून-ए-हसरत-ए-बेदाद होता है
सितम ईजाद करते हो करम ईजाद होता है
ब-ज़ाहिर कुछ नहीं कहते मगर इरशाद होता है
हम उस के हैं जो हम पर हर तरह बर्बाद होता है
मिरे नाशाद रहने पर वो जब नाशाद होता है
बताऊँ क्या जो मेरा आलम-ए-फ़रियाद होता है
यही है राज़-ए-आज़ादी जहाँ तक याद होता है
कि नज़रें क़ैद होती हैं तो दिल आज़ाद होता है
दिल-ए-आशिक़ भी क्या मज्मुआ-ए-अज़्दाद होता है
उधर आबाद होता है इधर बर्बाद होता है
वो हर इक वाक़िआ जो सूरत-ए-उफ़्ताद होता है
कभी पहले भी देखा था कुछ ऐसा याद होता है
बड़ी मुश्किल से पैदा एक वो आदम-ज़ाद होता है
जो ख़ुद आज़ाद जिस का हर नफ़स आज़ाद होता है
निगाहें क्या कि पहरों दिल भी वाक़िफ़ हो नहीं सकता
ज़बान-ए-हुस्न से ऐसा भी कुछ इरशाद होता है
तुम्हीं हो ताना-ज़न मुझ पर तुम्हीं इंसाफ़ से कह दो
कोई अपनी ख़ुशी से ख़ानमाँ-बर्बाद होता है
ये माना नंग-ए-पाबंदी से क्या आज़ाद को मतलब
मगर वो शर्म-ए-आज़ादी से भी आज़ाद होता है
तसव्वुर में है कुछ ऐसा तिरी तस्वीर का आलम
कि जैसे अब लब-ए-नाज़ुक से कुछ इरशाद होता है
कोई हद ही नहीं शायद मोहब्बत के फ़साने की
सुनाता जा रहा है जिस को जितना याद होता है