दिल को सुकून रूह को आराम आ गया
दिल को सुकून रूह को आराम आ गया मौत आ गई कि दोस्त का पैग़ाम आ गया जब कोई ज़िक्र-ए-गर्दिश-ए-अय्याम आ गया बे-इख़्तियार लब पे तिरा नाम आ गया ग़म में भी है सुरूर वो हंगाम आ गया शायद कि दौर-ए-बादा-ए-गुलफ़ाम आ गया दीवानगी हो अक़्ल हो उम्मीद हो कि यास अपना वही है वक़्त पे जो काम आ गया दिल के मुआमलात में नासेह शिकस्त क्या सौ बार हुस्न पर भी ये इल्ज़ाम आ गया सय्याद शादमाँ है मगर ये तो सोच ले मैं आ गया कि साया तह-ए-दाम आ गया दिल को न पूछ मारका-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में क्या जानिए ग़रीब कहाँ काम आ गया ये क्या मक़ाम-ए-इश्क़ है ज़ालिम कि इन दिनों अक्सर तिरे बग़ैर भी आराम आ गया अहबाब मुझ से क़त-ए-तअल्लुक़ करें 'जिगर' अब आफ़्ताब-ए-ज़ीस्त लब-ए-बाम आ गया

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