दिल को मिटा के दाग़-ए-तमन्ना दिया मुझे
दिल को मिटा के दाग़-ए-तमन्ना दिया मुझे ऐ इश्क़ तेरी ख़ैर हो ये क्या दिया मुझे महशर में बात भी न ज़बाँ से निकल सकी क्या झुक के उस निगाह ने समझा दिया मुझे मैं और आरज़ू-ए-विसाल-ए-परी-रुख़ाँ इस इश्क़-ए-सादा-लौह ने बहका दिया मुझे हर बार यास हिज्र में दिल की हुई शरीक हर मर्तबा उम्मीद ने धोका दिया मुझे अल्लाह रे तेग़-ए-इश्क़ की बरहम-मज़ाहियाँ मेरे ही ख़ून-ए-शौक़ में नहला दिया मुझे ख़ुश हूँ कि हुस्न-ए-यार ने ख़ुद अपने हाथ से इक दिल-फ़रेब दाग़-ए-तमन्ना दिया मुझे दुनिया से खो चुका है मिरा जोश-ए-इंतिज़ार आवाज़-ए-पाए-ए-यार ने चौंका दिया मुझे दावा किया था ज़ब्त-ए-मोहब्बत का ऐ 'जिगर' ज़ालिम ने बात बात पे तड़पा दिया मुझे

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