एक बार ख़बर उड़ी
कि कविता अब कविता नहीं रही 
और यूँ फैली 
कि कविता अब नहीं रही !
यक़ीन करनेवालों ने यक़ीन कर लिया 
कि कविता मर गई, 
लेकिन शक़ करने वालों ने शक़ किया 
कि ऐसा हो ही नहीं सकता 
और इस तरह बच गई कविता की जान 
ऐसा पहली बार नहीं हुआ 
कि यक़ीनों की जल्दबाज़ी से 
महज़ एक शक़ ने बचा लिया हो 
किसी बेगुनाह को ।
	