उनके पश्चात्
कुछ घटता चला जाता है मुझमें उनके न रहने से जो थे मेरे साथ मैं क्या कह सकता हूँ उनके बारे में, अब कुछ भी कहना एक धीमी मौत सहना है। हे दयालु अकस्मात् ये मेरे दिन हैं ? या उनकी रात ? मैं हूँ कि मेरी जगह कोई और कर रहा उनके किये धरे पर ग़ौर ? मैं और मेरी दुनिया, जैसे कुछ बचा रह गया हो उनका ही उनके पश्चात् ऐसा क्या हो सकता है उनका कृतित्व- उनका अमरत्व - उनका मनुष्यत्व- ऐसा कुछ सान्त्वनीय ऐसा कुछ अर्थवान जो न हो केवल एक देह का अवसान ? ऐसा क्या कहा जा सकता है किसी के बारे में जिसमें न हो उसके न-होने की याद ? सौ साल बाद परस्पर सहयोग से प्रकाशित एक स्मारिका, पारंपरिक सौजन्य से आयोजित एक शोकसभा : किसी पुस्तक की पीठ पर एक विवर्ण मुखाकृति विज्ञापित एक अविश्वसनीय मुस्कान !

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