नवल मेरे जीवन की डाल
नवल मेरे जीवन की डाल बन गई प्रेम-विहग का वास! आज मधुवन की उन्मद वात हिला रे गई पात-सा गात, मन्द्र, द्रुम-मर्मर-सा अज्ञात उमड़ उठता उर में उच्छ्वास! नवल मेरे जीवन की डाल बन गई प्रेम-विहग का वास! मदिर-कोरों-से कोरक जाल बेधते मर्म बार रे बार, मूक-चिर प्राणों का पिक-बाल आज कर उठता करुण पुकार; अरे अब जल-जल नवल प्रवाल लगाते रोम-रोम में ज्वाल, आज बौरे रे तरुण-रसाल भौंर-मन मँडरा गई सुवास!

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