द्वाभा के एकाकी प्रेमी
द्वाभा के एकाकी प्रेमी, नीरव दिगन्त के शब्द मौन, रवि के जाते, स्थल पर आते कहते तुम तम से चमक--कौन? सन्ध्या के सोने के नभ पर तुम उज्ज्वल हीरक सदृश जड़े, उदयाचल पर दीखते प्रात अंगूठे के बल हुए खड़े! अब सूनी दिशि औ’ श्रान्त वायु, कुम्हलाई पंकज-कली सृष्टि; तुम डाल विश्व पर करुण-प्रभा अविराम कर रहे प्रेम-वृष्टि! ओ छोटे शशि, चाँदी के उडु! जब जब फैले तम का विनाश, तुम दिव्य-दूत से उतर शीघ्र बरसाओ निज स्वर्गिक प्रकाश!

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