मुसकुरा दी थी क्या तुम प्राण
मुसकुरा दी थी क्या तुम, प्राण! मुसकुरा दी थी आज विहान? आज गृह-वन-उपवन के पास लोटता राशि-राशि हिम-हास, खिल उठी आँगन में अवदात कुन्द-कलियों की कोमल-प्रात। मुसकुरा दी थी, बोलो, प्राण! मुसकुरा दी थी तुम अनजान? आज छाया चहुँदिशि चुपचाप मृदुल मुकुलों का मौनालाप, रुपहली-कलियों से, कुछ-लाल, लद गईं पुलकित पीपल-डाल; और वह पिक की मर्म-पुकार प्रिये! झर-झर पड़ती साभार, लाज से गड़ी न जाओ, प्राण! मुसकुरा दी क्या आज विहान?

Read Next