वह विजन चाँदनी की घाटी
वह विजन चाँदनी की घाटी छाई मृदु वन-तरु-गन्ध जहाँ, नीबू-आड़ू के मुकुलों के मद से मलयानिल लदा वहाँ! सौरभ-श्लथ हो जाते तन-मन, बिछते झर-झर मृदु सुमन-शयन, जिन पर छन, कम्पित पत्रों से, लिखती कुछ ज्योत्सना जहाँ-तहाँ! आ कोकिल का कोमल कूजन, उकसाता आकुल उर-कम्पन, यौवन का री वह मधुर स्वर्ग, जीवन बाधाएँ वहाँ कहाँ?

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