जग के दुख दैन्य शयन पर
जग के दुख-दैन्य-शयन पर यह रुग्णा जीवन-बाला रे कब से जाग रही, वह आँसू की नीरव माला! पीली पड़, निर्बल, कोमल, कृश-देह-लता कुम्हलाई; विवसना, लाज में लिपटी, साँसों में शून्य समाई! रे म्लान अंग, रँग, यौवन! चिर-मूक, सजल, नत-चितवन! जग के दुख से जर्जर-उर, बस मृत्यु-शेष है जीवन!! वह स्वर्ण-भोर को ठहरी जग के ज्योतित आँगन पर, तापसी विश्व की बाला पाने नव-जीवन का वर!

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