मिट्टी का गहरा अंधकार
सृष्टि मिट्टी का गहरा अंधकार डूबा है उसमें एक बीज,-- वह खो न गया, मिट्टी न बना, कोदों, सरसों से क्षुद्र चीज! उस छोटे उर में छिपे हुए हैं डाल-पात औ’ स्कन्ध-मूल, गहरी हरीतिमा की संसृति, बहु रूप-रंग, फल और फूल! वह है मुट्ठी में बंद किए वट के पादप का महाकार, संसार एक! आश्चर्य एक! वह एक बूँद, सागर अपार! बन्दी उसमें जीवन-अंकुर जो तोड़ निखिल जग के बन्धन,-- पाने को है निज सत्व,--मुक्ति! जड़ निद्रा से जग कर चेतन! आः, भेद न सका सृजन-रहस्य कोई भी! वह जो क्षुद्र पोत, उसमें अनन्त का है निवास, वह जग-जीवन से ओत-प्रोत! मिट्टी का गहरा अन्धकार, सोया है उसमें एक बीज,-- उसका प्रकाश उसके भीतर, वह अमर पुत्र, वह तुच्छ चीज?

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