अँधियाली घाटी में
अँधियाली घाटी में सहसा हरित स्फुलिंग सदृश फूटा वह! वह उड़ता दीपक निशीथ का,-- तारा-सा आकर टूटा वह! जीवन के इस अन्धकार में मानव-आत्मा का प्रकाश-कण जग सहसा, ज्योतित कर देता मानस के चिर गुह्य कुंज-वन!

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