शीतल तरु छाया में बैठे
शीतल तरु छाया में बैठे हरते थे निज क्लांति पांथ जन, कंपित कर से पान पात्र भर, देख सुरा का रक्तिम आनन! हँसमुख सहचर मधुर कंठ से गाते थे मदिरालस लोचन, बोला हँसकर एक पात्र भर उमर बीत जाएँगे ये क्षण!

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