जिसके उर का अंध कूप
जिसके उर का अंध कूप हो उठा प्रीति जल से परिप्लावित, हँसने रोने में न गँवाता वह अमूल्य जीवन क्षण निश्चित! प्रिय चरणों पर उमर निछावर चखता स्वतः स्फुरित मदिरामृत, लाला के रँग की हाला भर पीता बाला के सँग प्रमुदित!

Read Next