उस गुलवदनी को पाकर भी
उस गुलवदनी को पाकर भी पा न सकोगे उसका प्यार, जब तक क्रूर विरह का कंटक सखे, न कर देगा उर पार! कंघी को लो, तार तार जब तक न हुआ था उसका गात, फेर सकी वह नहीं उँगलियाँ प्रेयसि अलकों पर सुकुमार!

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