लाओ हे लज्जास्मित प्रेयसि
लाओ, हे लज्जास्मित प्रेयसि, मदिर लालिमा का घट सुंदर, मधुर प्रणय के मदिरालस में आज डुबाओ मेरा अंतर! ज्ञानी, रसिक, विमूढ़ों को जो बंदी कर निज प्रीति पाश में विस्मृत कर देती क्षण भर को, लाओ वह मधु ज्वाल पात्र भर!

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