हे मनुष्य, गोपन रहस्य यह
हे मनुष्य, गोपन रहस्य यह स्वर्ग लोक से हुआ प्रकाश, मात्र तुम्हारे अंतर से ही निखिल सृष्टि का हुआ विकास! तुम्हीं देवता हो, तुम दानव, हिंसक पशु, स्नेही मानव, तुम्हीं साधु खल, स्वर्ग दूत दुष्कृती तुम्हीं, तुम नित अभिनव! तुम्हीं मात्र अपनी तुलना हो, तुमसे सब कुछ है संभव, सखे, तुम्हारे ही स्वप्नों से हुआ तुम्हारा भी उद्भव!

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