छोड़ काज, आओ मधु प्रेयसि
छोड़ काज, आओ मधु प्रेयसि, बैठो वृद्ध उमर के संग, क़ैक़ुवाद औ’ केख़ुसरू का छेड़ो मत प्राचीन प्रसंग! हुआ धराशायी चिर रुस्तम जीत जगत जीवन संग्राम, रहा न हातमताई का भी सांध्य भोज का अब रस रंग!

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