तू प्रसन्न रह महाकाल यह
तू प्रसन्न रह, महाकाल यह है अनंत, विधि गति अनिवार, नक्षत्रों की मणियों से नित खचित रहेगा गगन अपार! वे ईंटें जो तेरे तन की मिट्टी से होंगी तैयार, किसी शाह के रंग महल की सखे, बनेंगी वे दीवार!

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