निभृत विजन में मेरे मन में
निभृत विजन में मेरे मन में हुआ एक दिन स्वप्नाभास,-- मुग्ध यौवना गीत गुनगुना बैठी है ज्यों मेरे पास! मेरा मन खो गया विहग बन नयन नीलिमा में तत्काल, वैभव सुख की, सुत के मुख की रही न फिर मुझको अभिलाष!

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