सरित पुलिन पर सोया था मैं
सरित पुलिन पर सोया था मैं मधुर स्वप्न सुख में तल्लीन, विधु वदनी बैठी थी सन्मुख कर में मधु घट धरे नवीन! झलक रहा था मदिर सुरा में प्रेयसि का मुख बिम्ब तरल, रजत सीप में मुक्ता जैसे प्रातः सर में रक्त कमल! उसी समय मेरे कानों में गूँज उठी कंठ ध्वनि घोर, बीती रात, जाग रे ग़ाफ़िल, तज सुख स्वप्न, हुआ अब भोर!

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