फूलों के कोमल करतल पर
फूलों के कोमल करतल पर ओसों के कण लगते सुंदर, मुग्धा का मदिरालस आनन उमर मुग्ध कर लेता अंतर! ओ रे, कल के मोह से मलिन, बीत गया अब वह कल का दिन! उठ, अब हँस कर पान पात्र भर, चूम प्रेयसी के मदिराधर!

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