कितने कोमल कुसुम नवल
कितने कोमल कुसुम नवल कुम्हलाते नित्य धरा पर झर झर, यह नभ अब तक सुन प्रिय बालक, मिटा चुका कितने मुख सुंदर! मान न कर चंचल यौवन पर यह मदिरा का बुद्बुद अस्थिर, सरिता का जल, जीवन के पल लौट नहीं आते रे फिर फिर!

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