जगत छलना की उन्हें न चाह
जगत छलना की उन्हें न चाह, धीर जो नर, धीमान्! सुरा का बहता रहे प्रवाह, डूब जाएँ तन प्राण! सुराही से हो सुरा प्रपात, दर्द से दिल बेताब! मूर्ख वे, खाते ग़म दिन रात, उमर पीते न शराब!

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