चाँद ने मार रजत का तीर
चाँद ने मार रजत का तीर निशा का अंचल डाला चीर, जाग रे, कर मदिराधर पान, भोर के दुख से हो न अधीर! इंदु की यह अमंद मुसकान रहेगी इसी तरह अम्लान, हमारा हृदय धूलि पर, प्राण, एक दिन हँस देगी अनजान!

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