यदि तेरा अंचल वाहक
यदि तेरा अंचल वाहक मैं भी बन सकता, प्रियतम! भर देती उर घावों को तेरी करुणा की मरहम! उस निस्तल मधु सागर से पीते जिससे जड़ चेतन, साक़ी, मैं भी पा जाता तब एक बूँद उर मादन!

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