उस हरी दूब के ऊपर
उस हरी दूब के ऊपर छाया जो बादल सुंदर, वह बरस पड़ा अब झर झर, वह चला गया हँस-रोकर! अह, भरा हुआ यह जीवन ज्यों अश्रु भरा सावन घन, साक़ी के मधु अधरों पर झर झर हो जाय निछावर!

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