स्वर्गिक अप्सरि सी प्रिय सहचरि
स्वर्गिक अप्सरि सी प्रिय सहचरि हो हँसमुख सँग, मधुर गान हो, सुरा पान हो, लज्जारुण रँग! कल कल छल छल बहता हो जल तट हो कुसुमित, कोमल शाद्वल चूमे पद तल, साक़ी हो स्मित! इससे अतिशय स्वर्ग न सुखमय यही सुर सदन, छोड़ मोह भय, मदिरा में लय हो विमूढ़ मन!

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