अपना आना किसने जाना
अपना आना किसने जाना? जग में आ फिर क्या पछताना? जो आते वे निश्वय जाते, तुझको मुझको भी है जाना! बाँध कमर, ओ साक़ी सुंदर, उठ, कंपित कर में प्याली धर, प्रीति सुधा भर, भीति द्विधा हर, चिर विस्मृति में डूबे अंतर!

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