स्तुत्य यदि तेरे काम
स्तुत्य यदि तेरे काम, न तेरे गुण से वे, सच जान! निन्द्य यदि तू अघ ग्राम, न तेरा दोष, व्यर्थ अभिमान! छोड़ सदसद् अविचार, बंधु, ईश्वर सब का करतार! उसी के सब व्यापार, तुझे क्यों भय, मिथ्याहंकार!

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