दुख से मथित व्यथित यदि तू चित
दुख से मथित, व्यथित यदि तू नित क्षुब्ध न हो रे, विधि गति अविदित! पर से निज दुख बदल, यही सुख, व्यर्थ न रो रे, पी मदिरामृत! हृदय पात्र भर, प्रणय क्षात्र बन, विस्मृति में कर सुख दुख मज्जित, स्वप्न फेन कण जीवन के क्षण हँस हँस साक़ी को कर अर्पित!

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