अधर सुख से हों स्पंदित प्राण
अधर सुख से हों स्पंदित प्राण, बहे या विरह अश्रु जल धार, फूल बरसें, या कंटक, वाण, मुझे प्रभु की इच्छा स्वीकार! तुम्हारी रुचि मेरी रुचि नाथ, गहो या गहो न मेरा हाथ, छोड़ दो जीर्ण तरी मँझधार लगाओ या भव सागर पार!

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