पूछते मुझसे, ‘ए ख़ैयाम,
तुझे क्यों भाया मधु व्यापार?’
सुनो, ‘मैंने धर्मों को छान
किया इस मदिर दृगी से प्यार!
स्वर्ग सुख मदिराधर पर वार!
‘न मैं नास्तिक, न नीति मर्याद
तोड़ता, करता वाद विवाद;
रहे मदिरालय चिर आबाद,
ना आए मुझको अपनी याद!
ख़ुदा है उमर मृत्यु के बाद!’