हृदय जो सदय प्रणय आगार
हृदय जो सदय, प्रणय आगार, भक्त, उस उर पर कर अधिकार! न मंदिर मसजिद के जा द्वार न जड़ काबे पर तन मन वार! अगर ईश्वर को कुछ स्वीकार हृदय जो सदय, प्रणय आगार! हृदय पर यदि न तुझे अधिकार भक्त, पी अमर प्रणय मधु धार!

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