लज्जारुण मुख बैठी सम्मुख
लज्जारुण मुख, बैठी सम्मुख, प्रेयसि कंपित कर से उत्सुक भर ज्वाला रस, हाला हँस-हँस उमर पिलाए, हृदय हो अवश! हृदय हीन कह लें मलीन, मैं मधु वारिधि का मुग्ध मीन! अपवर्ग व्यर्थ : केवल निसर्ग संगीत, सुरा, सुंदरी,--स्वर्ग!

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