सुनहले फूलों से रच अंग
सुनहले फूलों से रच अंग सलज लाला सा मुख सुकुमार, सुरा घट सा दे मादक रंग शिखर तरु सा उन्नत आकार! न जाने तुमने क्यों, करतार, भरी प्राणों में तरुण उमंग, बुना क्यों स्वप्न मधुर संसार हृदय सर में भर मदिर तरंग! रचे जो मुरझाने को फूल, तड़पने को बुलबुल का प्यार, उमर मदिराधर रस में भूल न क्यों तब दे सब शोक बिसार!

Read Next