यहाँ नीलिमा हँसती निर्मल
यहाँ नीलिमा हँसती निर्मल, कँपता हरित तृणों का अंचल, गाता फेन ग्रथित जल कल कल! अरे त्याग तप संयम में रत! किस मिथ्या ममता हित ये व्रत? यह विराग क्यों भग्न मनोरथ? बंकिम दृग, रक्तिम मदिराधर, यह सुरांगना सुरा मनोहर तुझे बुलाती, इसे अंक भर! कौन जानता, क्या होगा फिर, सुरा फेन सा जीवन अस्थिर, पी रे मदिरा का यौवन चिर!’

Read Next