मदिराधर कर पान
मदिराधर कर पान नहीं रहता फिर जग का ज्ञान! आता जब निज ध्यान सहज कुंठित हो उठते प्राण! जाग्रत विस्मृत साथ सतत जो रहता, वह अविकार! वृद्ध उमर भी माथ नवाता उसे सखे, साभार!

Read Next