प्रीति सुरा भर, साक़ी सुन्दर
प्रीति सुरा भर, साक़ी सुन्दर, मोह मथित मानस हो प्रमुदित! स्वप्न ग्रथित मन, विस्तृत लोचन, मर्त्य निशा हो स्वर्ग उषा स्मित! प्रणय सुरा हो, हृदय भरा हो, लज्जारुण मुख हो प्रतिबिंबित, पी अधरामृत हों मृत जीवित प्रीति सुरा भर, प्रीति सुरा नित!

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